बालकृष्ण भट्ट: राष्ट्रीय चेतना की प्रभावशाली आवाज़ और हिंदी गद्य के कुशल शिल्पकार

बालकृष्ण भट्ट: राष्ट्रीय चेतना की प्रभावशाली आवाज़ और हिंदी गद्य के कुशल शिल्पकार

दिल्ली में आयोजित संगोष्ठी में बालकृष्ण भट्ट के साहित्यिक, पत्रकारिता और सामाजिक योगदानों पर गहन चर्चा

पी.जी.डी.ए.वी. कॉलेज (ईवनिंग) में भारत के लेखक संघ और दिल्ली हिंदी साहित्य सम्मेलन के संयुक्त तत्वावधान में “बालकृष्ण भट्ट का साहित्य” विषय पर एक प्रेरक संगोष्ठी आयोजित की गई। इस ज्ञानवर्धक कार्यक्रम में विख्यात विद्वानों ने भट्ट के साहित्य, पत्रकारिता और सामाजिक- सांस्कृतिक चिंतन के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की।

कार्यक्रम की शुरुआत वरिष्ठ पत्रकार श्री दिलीप चौबे के स्वागत भाषण से हुई, जिन्होंने बालकृष्ण भट्ट को भारतीय पत्रकारिता के स्तंभ के रूप में वर्णित किया। उन्होंने बताया कि आज की निर्भीक पत्रकारिता की जड़ें भट्ट के साहसिक और सिद्धांतवादी लेखन में निहित हैं।

मुख्य वक्ता, दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रसिद्ध विद्वान प्रो. हरीश अरोड़ा ने भट्ट की साहित्यिक दृष्टि, ऐतिहासिक चेतना और सामाजिक प्रतिबद्धता पर प्रकाश डाला। उन्होंने भट्ट को हिंदी गद्य और कविता परंपरा के प्रणेता बताया, जिनके लेखन में तर्क और भावनाओं का अनूठा मिश्रण था, जो उन्हें भारतेंदु काल के विचारधारात्मक अग्रदूत के रूप में स्थापित करता है।

डॉ. विजय शंकर मिश्रा ने भट्ट की साहित्यिक प्रतिभा की तुलना पश्चिमी विचारकों से की और उन्हें “हिंदी का एडिसन” कहा। डॉ. राधेश्याम मिश्रा ने भट्ट के गद्य में निहित काव्यात्मकता को उदाहरणों सहित प्रस्तुत किया और उन्हें भाषा के नवप्रवर्तनक के रूप में परिभाषित किया।

नागरी लिपि परिषद के महासचिव डॉ. हरीसिंह पाल ने भट्ट को निर्भीक अभिव्यक्ति और साहसपूर्ण लेखन का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा कि समकालीन हिंदी पत्रकारिता की स्पष्टता और दृढ़ता भट्ट के प्रगतिशील प्रयासों की देन है।

डॉ. आशा जोशी ने अपने विशेष संबोधन में बालकृष्ण भट्ट की सामाजिक चिंता, विशेषकर बाल विवाह और जनसंख्या वृद्धि जैसे मुद्दों पर चर्चा की और उनके निबंधों में कबीर सदृश स्पष्टता को रेखांकित किया। युवा लेखिका नेहा कौशिक ने भट्ट के अनुवाद कार्यों के सांस्कृतिक आयामों पर प्रकाश डाला और बताया कि उनके अनुवाद केवल भाषाई नहीं बल्कि सांस्कृतिक पुनर्निर्माण थे।

मुख्य अतिथि डॉ. वीणा गौतम ने बताया कि भट्ट के विचार आज भी प्रासंगिक हैं, खासकर उस समय की सामाजिक बुराइयों और पश्चिमी प्रभावों के संदर्भ में।

सत्र की अध्यक्षता कर रहे प्रो. मुकेश अग्रवाल ने भट्ट की साहित्यिक चेतना को “सामूहिक चेतना का विकास” बताया और उनके सुप्रसिद्ध ग्रंथ ‘वेनुसंहार’ के एक श्लोक “खिला गुल हिंद में आवारगी का” का उल्लेख किया।

इस संगोष्ठी का समन्वय डॉ. शिव शंकर अवस्थी ने किया। उन्होंने कहा कि भट्ट का लेखन कला के शिखर तक न पहुँच पाने के बावजूद अपनी विचारधारात्मक दृढ़ता और सामाजिक प्रतिबद्धता के कारण हिंदी गद्य के मार्गदर्शक स्तंभ के रूप में विख्यात है। डॉ. अवस्थी ने भट्ट को एक दूरदर्शी चिंतक बताया जिनके बिना आधुनिक हिंदी निबंध और आलोचना अधूरी रहेगी।

इस आयोजन में दिल्ली और आसपास के कई प्रख्यात साहित्यकार, भाषाविद और अकादमिक मौजूद थे। कार्यक्रम का समापन श्री सत्यपाल चावला द्वारा धन्यवाद ज्ञापन से हुआ।

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