दाभोल/एनटीपीसी से जुड़े पूर्व सैनिकों ने दिल्ली में प्रेस वार्ता कर लंबित वेतन–पेंशन का मुद्दा उठाया, त्वरित कार्रवाई न होने पर धरना शुरू करने की चेतावनी दी।
नई दिल्ली | 26 दिसंबर 2025
दाभोल/एनटीपीसी प्रकरण से जुड़े 96 पूर्व सैनिकों ने शुक्रवार को प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से अपने 24 वर्षों से लंबित वेतन और पेंशन के मामले को जोरदार तरीके से उठाया। पूर्व सैनिकों ने सरकार और संबंधित संस्थानों पर गंभीर लापरवाही का आरोप लगाते हुए साफ कहा कि यदि अब भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, तो वे अनिश्चितकालीन आंदोलन शुरू करने को मजबूर होंगे।
मुंबई से आए पूर्व सैनिकों ने मीडिया के सामने पूरे मामले से संबंधित दस्तावेज प्रस्तुत किए और बताया कि दशकों तक सेवा देने के बावजूद उन्हें न तो उनका वेतन मिला और न ही पेंशन। इसका असर उनकी रोजमर्रा की जिंदगी पर साफ दिख रहा है। कई पूर्व सैनिक उम्र के इस पड़ाव पर पहुंच चुके हैं, जहां इलाज, भोजन और रहने जैसी बुनियादी जरूरतें भी चुनौती बन गई हैं।
पूर्व सैनिकों ने कहा कि “जय हिंद, जय जवान” केवल नारा नहीं, बल्कि उनके जीवन का हिस्सा है, लेकिन आज वही जवान अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहा है। वक्ताओं ने इस स्थिति को व्यवस्था की गंभीर विफलता करार दिया।
प्रेस वार्ता के दौरान माहौल उस समय भावुक हो गया, जब पत्रकारों के सवालों के बीच कई पूर्व सैनिक अपने दर्द को रोक नहीं पाए। 24 वर्षों के इंतजार और लगातार अनदेखी की पीड़ा उनके शब्दों और आंखों से झलक रही थी। इसी दौरान कुछ पूर्व सैनिकों ने प्रतीकात्मक विरोध करते हुए कहा कि अब उनके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं बचा है। इस दृश्य ने वहां मौजूद पत्रकारों को भी भावुक कर दिया। पत्रकारों ने एकजुट होकर आश्वासन दिया कि वे इस मुद्दे को पूरी गंभीरता से उठाएंगे और इसे दबने नहीं देंगे।
पूर्व सैनिक लक्ष्मण महाडिक ने कहा,
“24 साल किसी भी इंसान की जिंदगी का बड़ा हिस्सा होते हैं। हमने पूरी ईमानदारी से सेवा की, लेकिन बदले में सिर्फ आश्वासन मिले। अब धैर्य जवाब दे चुका है।”
सूर्यकांत पवार ने स्पष्ट किया कि यह मामला भावनाओं का नहीं, बल्कि पुख्ता दस्तावेजों पर आधारित है।
“हमने सारे रिकॉर्ड मीडिया के सामने रख दिए हैं। अब जवाबदेही तय होनी चाहिए।”
आर. जी. पवार ने सवाल उठाया कि देश के लिए काम करने वाले सैनिक आज किस हालात में जीने को मजबूर हैं। उन्होंने कहा कि जो सैनिक हर युद्ध में डटे रहे, वे आज रोटी, कपड़ा और दवा के लिए जूझ रहे हैं।
वी. एस. सालुंखे ने चेतावनी देते हुए कहा,
“हमने सभी संवैधानिक रास्ते अपना लिए हैं। अब या तो हमें न्याय मिलेगा, या आंदोलन और तेज होगा।”
सुरेश पचपुटे ने मीडिया से अपील की कि इस मुद्दे को नजरअंदाज न किया जाए।
“अगर आज भी हमारी आवाज नहीं सुनी गई, तो यह संदेश जाएगा कि सैनिकों के अधिकारों की कोई कीमत नहीं है।”
चंद्रकांत शिंदे ने कहा कि यह संघर्ष अब केवल 96 पूर्व सैनिकों तक सीमित नहीं है, बल्कि 96 परिवारों के भविष्य से जुड़ा हुआ है। वहीं विजय निकम ने आगे की रणनीति स्पष्ट करते हुए बताया कि यदि तत्काल कार्रवाई नहीं हुई, तो दाभोल/एनटीपीसी मुख्यालय के सामने अनिश्चितकालीन धरना दिया जाएगा।
पूर्व सैनिकों ने दोहराया कि वे शांतिपूर्ण और संवैधानिक तरीके से न्याय की मांग कर रहे हैं, लेकिन 24 वर्षों की लगातार उपेक्षा ने उन्हें निर्णायक कदम उठाने के लिए मजबूर कर दिया है।