लहसून पर अवैध आढ़त वसूली को सुप्रीम कोर्ट ने बताया गैरकानूनी, किसानों को मिली बड़ी राहत

मध्यप्रदेश मंडी बोर्ड का 2015 का आदेश रद्द, 9 साल से रोज़ाना हो रही 2 करोड़ की अवैध वसूली पर लगी रोक; किसान मुकेश सोमानी की 19 साल की लड़ाई लाई रंग
सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय में स्पष्ट कर दिया है कि लहसून को फल-सब्ज़ी मानकर उस पर आढ़त वसूलना पूरी तरह गैरकानूनी है। यह फैसला मध्यप्रदेश के किसान और व्यापारी मुकेश सोमानी की 19 वर्षों की सतत कानूनी लड़ाई का नतीजा है।
मुख्य बिंदु:
- सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश मंडी बोर्ड के 13 फरवरी 2015 के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें लहसून को फल-सब्ज़ी की तरह नीलाम करने और उस पर आढ़त वसूलने की बात कही गई थी।
- अदालत ने कहा, “लहसून मसालों की श्रेणी में आता है, उस पर आढ़त लागू करना अवैध है।”
- इससे रोज़ाना लगभग 2 करोड़ रुपये की जो अवैध वसूली पिछले 9 वर्षों से किसानों से की जा रही थी, अब पूरी तरह बंद हो गई है।
संघर्ष की शुरुआत: अन्याय के खिलाफ एक किसान की आवाज़
2006 में मुकेश सोमानी ने देखा कि मध्यप्रदेश की 258 मंडियों में से केवल 4 मंडियों में ही आढ़त प्रथा लागू है। बाकी 254 मंडियों में सरकारी व्यवस्था के तहत कारोबार हो रहा था। इसी अंतरविरोध ने उन्हें यह महसूस कराया कि किसानों के साथ बड़ा आर्थिक अन्याय हो रहा है। उन्होंने इसी अन्याय के खिलाफ कानूनी लड़ाई का रास्ता चुना।
इस संघर्ष में अधिवक्ता अभिषेक तुगनावत शुरू से उनके साथ खड़े रहे और मुकदमे को उच्च न्यायालय से होते हुए सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचाया।
सुप्रीम कोर्ट तक का सफर: दृढ़ निश्चय और सच्चाई की जीत
इस केस की सुप्रीम कोर्ट में प्रभावी पैरवी वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. हर्ष पाठक और अधिवक्ता अभिषेक तुगनावत ने की। आखिरकार, सर्वोच्च अदालत से वह ऐतिहासिक फैसला आया, जिससे मध्यप्रदेश के लाखों किसानों को आढ़तियों की लूट से मुक्ति मिल गई।
अगला लक्ष्य: किसानों को उनका हक़ दिलाना
फैसले के बाद मुकेश सोमानी ने कहा,
“यह सिर्फ कोर्ट की जीत नहीं, बल्कि किसानों की गरिमा की वापसी है।”
अब उनका अगला उद्देश्य है कि वर्ष 2016 से 2025 तक किसानों से जबरन वसूले गए लगभग 20,000 करोड़ रुपये की राशि उन्हें वापस दिलाई जाए।
इसके अलावा उन्होंने यह भी ऐलान किया कि अब उनका अगला संघर्ष प्याज पर लगाए गए 5% आढ़त को समाप्त कराने के लिए होगा, ताकि किसानों को और नुकसान न उठाना पड़े।
संगठित संघर्ष की जीत: प्रेरणा पूरे देश के किसानों के लिए
मुकेश सोमानी और अभिषेक तुगनावत ने यह सिद्ध कर दिया है कि जब किसान जागरूक होकर संगठित रूप से अपने अधिकारों के लिए खड़े होते हैं, तो न्याय प्रणाली भी उनका साथ देती है और व्यवस्था को झुकना पड़ता है। यह सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि पूरे किसान समुदाय की जीत है।
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