सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश पुलिस पर पत्रकारों से मारपीट के आरोपों पर सुनवाई शुरू की

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दो पत्रकारों, शशिकांत जाटव और अमरकांत सिंह चौहान की याचिका पर सुनवाई की, जिसमें आरोप लगाया गया है कि मध्य प्रदेश में अवैध रेत खनन की रिपोर्टिंग के कारण उन्हें पुलिस ने हिरासत में लेकर प्रताड़ित किया।
न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए मध्य प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया और मामले की अगली सुनवाई 9 जून निर्धारित की। याचिकाकर्ताओं ने गिरफ्तारी से सुरक्षा की मांग करते हुए कहा कि उन्हें जान का खतरा है और उनके पत्रकारिता कार्य को दबाने की कोशिश की जा रही है।
दिल्ली हाई कोर्ट ने पहले भी दी थी सुरक्षा का आदेश
अमरकांत सिंह चौहान, जो स्वराज एक्सप्रेस के भिंड ब्यूरो प्रमुख हैं, को मई में दिल्ली हाई कोर्ट ने दो महीने की सुरक्षा प्रदान करने का आदेश दिया था। चौहान ने बताया था कि पुलिस की धमकियों और डर के माहौल के कारण वे मध्य प्रदेश छोड़ने को मजबूर हुए हैं। उन्होंने कहा कि चंबल क्षेत्र में अवैध रेत खनन पर रिपोर्टिंग के बाद स्थानीय पुलिस अधिकारी उनके खिलाफ कार्रवाई कर रहे हैं।
न्यायमूर्ति रविंदर दुजेडा की एकल पीठ ने दिल्ली पुलिस को चौहान को सुरक्षा देने का निर्देश दिया था, साथ ही कहा था कि वे आगे की राहत के लिए मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय से संपर्क करें।
पत्रकारों पर पुलिस द्वारा की गई कथित यातना और दबाव
याचिका में यह आरोप लगाया गया है कि मध्य प्रदेश में स्वतंत्र पत्रकारों को निशाना बनाकर पुलिस उन्हें धमका रही है। धर्मेंद्र ओझा (न्यूज़ 24), शशिकांत जाटव (बेजोड़ रत्न), और प्रीतम सिंह (NTV भारत) सहित कई पत्रकारों को भिंड एसपी कार्यालय में तलब किया गया, जहां उनका कथित रूप से शारीरिक उत्पीड़न, कपड़े उतारने, मोबाइल जब्त करने और वीडियो बयान देने के लिए मजबूर करने जैसे अत्याचार किए गए।
विशेष रूप से चौहान और शशिकांत जाटव को पुलिस ने पीटा और झूठा बयान देने के लिए दबाव डाला, जिसमें कहा गया कि “मामला सुलझा लिया गया है।”
पत्रकारों और वरिष्ठ मीडिया कर्मियों की प्रतिक्रिया
पत्रकार शशिकांत जाटव ने कहा,
“मुझे सर्वोच्च न्यायालय पर पूरा विश्वास है। हम बस अपना पत्रकारिता कर्तव्य निभा रहे थे, भ्रष्टाचार को उजागर कर रहे थे जो जनता और पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है। हमें उम्मीद है कि न्याय मिलेगा।”
वरिष्ठ पत्रकार मनोज कुमार शर्मा ने इस मामले को लोकतंत्र के लिए खतरनाक बताते हुए कहा,
“यह हमला सिर्फ पत्रकारों पर नहीं, बल्कि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर है। राज्य प्रशासन की इस मनमानी पर रोक लगाना जरूरी है। न्यायपालिका की भूमिका इस मामले में आश्वस्त करती है कि देश में न्याय व्यवस्था जीवित है।”
प्रेस स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक संस्थानों के लिए बड़ी चुनौती
यह मामला भारत में प्रेस की स्वतंत्रता और पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर बढ़ते खतरों को दर्शाता है। सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका एक अहम कसौटी साबित होगी कि क्या हमारे लोकतांत्रिक संस्थान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रेस सुरक्षा की रक्षा कर पा रहे हैं।
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