कैसे जरदारी ने मुशर्रफ से इस्तीफा दिलवाया? फर्हतुल्लाह बाबर की किताब से अहम खुलासे

इस्लामाबाद – पाकिस्तान के मौजूदा राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने अपने पहले कार्यकाल की शुरुआत में ही एक बड़ा राजनीतिक मास्टरस्ट्रोक चलकर तत्कालीन राष्ट्रपति और पूर्व सैन्य शासक परवेज मुशर्रफ को पद छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया था। यह घटनाक्रम अगस्त 2008 में हुआ, जब जरदारी ने सेना प्रमुख जनरल अशफाक परवेज कयानी का समर्थन हासिल किया और अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी नवाज शरीफ को पीछे छोड़ दिया।
इस पूरे घटनाक्रम की जानकारी जरदारी के पूर्व प्रवक्ता फर्हतुल्लाह बाबर ने अपनी किताब “द जरदारी प्रेसिडेंसी” में दी है। इस किताब का हवाला पाकिस्तानी अखबार ‘द न्यूज’ में भी दिया गया है।
सेना से मिली हरी झंडी, फिर बनी इस्तीफे की रणनीति
फर्हतुल्लाह बाबर के अनुसार, 2008 के आम चुनावों के बाद जब पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) और नवाज शरीफ की पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) ने मिलकर मुशर्रफ के खिलाफ महाभियोग लाने की योजना बनाई, तब जरदारी ने सबसे पहले सेना प्रमुख कयानी से संपर्क साधा।
जनरल कयानी, जिन्हें अक्टूबर 2007 में उपसेना प्रमुख और फिर नवंबर में सेना प्रमुख बनाया गया था, ने मुशर्रफ को हटाए जाने पर कोई विरोध नहीं जताया। उन्होंने यहां तक कि पीपीपी के वरिष्ठ नेता अफताब शबान मिरानी का नाम राष्ट्रपति पद के लिए सुझाया। लेकिन जरदारी पहले से ही खुद इस पद पर नजरें गड़ाए हुए थे।
इस्तीफे की चेतावनी और दबाव की रणनीति
जब जरदारी को सेना का समर्थन मिल गया, तो उन्होंने अपने विश्वासपात्र नेताओं से प्रांतीय विधानसभाओं में महाभियोग प्रस्ताव पारित कराने को कहा। साथ ही, रिटायर्ड मेजर जनरल महमूद अली दुर्गानी के माध्यम से मुशर्रफ को एक सख्त संदेश भिजवाया गया — या तो स्वेच्छा से इस्तीफा दें, या फिर महाभियोग के लिए तैयार रहें।
हालांकि शुरुआत में मुशर्रफ ने इस चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया, लेकिन अंततः अगस्त 2008 के मध्य में उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
नवाज शरीफ भी बनना चाहते थे राष्ट्रपति
किताब में बताया गया है कि नवाज शरीफ भी राष्ट्रपति पद की इच्छा रखते थे। उन्होंने एक अनौपचारिक बातचीत में जरदारी से कहा, “मेरी पार्टी चाहती है कि मैं राष्ट्रपति बनूं।” इस पर जरदारी ने मुस्कराते हुए जवाब दिया, “मेरी पार्टी भी चाहती है कि मैं राष्ट्रपति बनूं।” यहीं पर बातचीत समाप्त हो गई और आगे कुछ नहीं बढ़ा।
सितंबर 2008 में जरदारी पाकिस्तान के राष्ट्रपति बन गए।
चौधरी की बहाली पर सेना का दबाव, तख्तापलट की आशंका
किताब में इस बात का भी जिक्र है कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश इफ्तिखार चौधरी, जिन्हें मुशर्रफ ने बर्खास्त किया था, उनकी बहाली को लेकर सेना और मंत्रिमंडल का दबाव जरदारी पर था। लॉन्ग मार्च के दौरान रावलपिंडी की त्रैतीय ब्रिगेड की “महत्वपूर्ण तैनाती” राष्ट्रपति भवन में की गई, जिससे एक तख्तापलट की आशंका उभरकर सामने आई। हालांकि बाबर के अनुसार, यह केवल एक दबाव बनाने की रणनीति थी।
जरदारी ने चौधरी की बहाली का विरोध किया और कहा कि वे उन्हें भलीभांति जानते हैं और चौधरी केवल अपनी व्यक्तिगत बहाली में रुचि रखते हैं, न्यायिक स्वतंत्रता में नहीं।
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