CJI बीआर गवई ने उठाया 61 साल पुराना मामला, नेहरू सरकार पर वरिष्ठता की अनदेखी कर नियुक्ति करने का आरोप

ब्रिटेन के सुप्रीम कोर्ट द्वारा आयोजित सम्मेलन में CJI बीआर गवई ने 1964 की उस घटना का जिक्र किया जब नेहरू सरकार ने न्यायपालिका में वरिष्ठता की परंपरा को दरकिनार किया था।
नेहरू काल में सीनियरिटी का उल्लंघन—गजेंद्रगडकर की नियुक्ति पर सवाल
CJI गवई ने बताया कि 1964 में जब जस्टिस पी.बी. गजेंद्रगडकर को देश का सातवां मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया, तब उनसे वरिष्ठ दो न्यायाधीशों—जस्टिस सैयद जफर इमाम और जस्टिस हंसराज खन्ना—को स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर नज़रअंदाज़ किया गया। यह नियुक्ति तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सरकार द्वारा की गई थी।
गजेंद्रगडकर का परिचय—संस्कृत विद्वान से देश के सर्वोच्च न्यायाधीश तक
जस्टिस गजेंद्रगडकर का जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले में 1901 में हुआ था। डेक्कन कॉलेज, पुणे से उच्च शिक्षा लेने के बाद उन्होंने 1926 में कानून की पढ़ाई पूरी की और बंबई हाई कोर्ट में वकालत शुरू की। 1945 में वे हाई कोर्ट के जज बने और 1956 में सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। CJI रहते हुए उन्होंने कई प्रमुख आयोगों का नेतृत्व किया, जिनमें विधि आयोग और जम्मू-कश्मीर जांच आयोग शामिल हैं।
गजेंद्रगडकर की नियुक्ति पर विवाद—शांति भूषण से जुड़ा विवादित प्रसंग
उनकी नियुक्ति पर शुरू से ही सरकार की ‘विशेष कृपा’ का आरोप लगता रहा है। सेवानिवृत्त होने के बाद जब शांति भूषण को CJI बनाए जाने की चर्चा हुई, तो गजेंद्रगडकर ने उनकी उम्र (40 वर्ष) का हवाला देकर विरोध किया। बाद में जब शांति भूषण कानून मंत्री बने, तो गजेंद्रगडकर को डर था कि उन्हें लॉ कमीशन चेयरमैन पद से हटा दिया जाएगा।
शांति भूषण ने अपनी आत्मकथा में उल्लेख किया कि गजेंद्रगडकर उनसे कई बार मिलने आए और पद से न हटाने की अपील करते रहे।
गवई का बयान क्यों है अहम?—सरकार बनाम सुप्रीम कोर्ट विवाद की नई कड़ी
CJI गवई का यह बयान ऐसे समय में सामने आया है जब कॉलेजियम प्रणाली को लेकर केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच लगातार विवाद चल रहा है। उनके वक्तव्य ने न केवल न्यायपालिका की स्वतंत्रता को लेकर चिंता जताई है, बल्कि इतिहास के उन पन्नों को भी उजागर किया है जब न्यायिक नियुक्तियों में राजनीतिक दखल सामने आया था।
Leave a Comment