क्या भारत क्रिप्टो माइनिंग में अपनी क्षमता से न्याय कर रहा है या अवसर गंवा रहा है?

क्रिप्टो माइनिंग डिजिटल दुनिया में वित्तीय नवाचार का एक महत्वपूर्ण स्तंभ बन चुका है, लेकिन भारत अब भी इस उभरते हुए क्षेत्र में पीछे छूटता नजर आ रहा है। अमेरिका, कनाडा और कजाकिस्तान जैसे देश पहले ही इस उद्योग में बड़े निवेश कर चुके हैं, जबकि भारत अपनी विशाल आईटी प्रतिभा और ऊर्जा संसाधनों के बावजूद इस क्षेत्र में निर्णायक कदम उठाने से हिचकिचा रहा है।
क्रिप्टो माइनिंग: कैसे काम करता है यह डिजिटल खनन?
क्रिप्टो माइनिंग वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से बिटकॉइन और अन्य डिजिटल मुद्राओं के नए टोकन बनाए जाते हैं और लेनदेन की पुष्टि की जाती है। यह जटिल गणनाओं पर आधारित एक विकेंद्रीकृत प्रणाली है, जिसमें ब्लॉकचेन तकनीक का उपयोग होता है। माइनिंग प्रक्रिया में शामिल लोग—जिन्हें माइनर्स कहा जाता है—अपने कंप्यूटर संसाधनों का उपयोग करके लेनदेन को सत्यापित करते हैं और बदले में नए टोकन के रूप में इनाम प्राप्त करते हैं।
वैश्विक स्तर पर बढ़ता क्रिप्टो माइनिंग का प्रभाव
अमेरिका वर्तमान में वैश्विक बिटकॉइन माइनिंग का 37.8% हिस्सा संभाल रहा है, जिसका मुख्य कारण वहां की सस्ती बिजली और अनुकूल सरकारी नीतियां हैं। छोटे देश भी इस क्षेत्र में आगे बढ़ चुके हैं—भूटान ने अपने जलविद्युत संसाधनों का उपयोग करके राष्ट्रीय स्तर पर माइनिंग का नेटवर्क स्थापित किया है, और टेक्सास में बिटकॉइन माइनिंग से न केवल आर्थिक लाभ हुआ है बल्कि बिजली ग्रिड को स्थिर करने में भी मदद मिली है।
भारत की स्थिति: क्षमता के बावजूद पिछड़ता देश
भारत में हर साल 15 लाख से अधिक इंजीनियरिंग स्नातक तैयार होते हैं, और देश के पास दुनिया की 11% आईटी कार्यबल क्षमता है, लेकिन इसके बावजूद भारत की हिस्सेदारी वैश्विक क्रिप्टो माइनिंग में 1% से भी कम है। इसकी मुख्य वजह है नीतिगत अनिश्चितता, भारी टैक्स दरें और आधारभूत संरचना की कमी।
2022 में भारत सरकार ने क्रिप्टो आय पर 30% कर और हर लेनदेन पर 1% टीडीएस लागू किया, जिससे कई भारतीय स्टार्टअप सिंगापुर, दुबई और एस्टोनिया जैसी जगहों पर चले गए। इस नीतिगत अस्थिरता ने भारत को एक महत्वपूर्ण डिजिटल क्रांति में भागीदार बनने से रोक दिया है।
क्रिप्टो माइनिंग: क्या यह भारत के लिए वरदान बन सकता है?
भारत 2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य रखता है। यदि इस अतिरिक्त ऊर्जा का उपयोग क्रिप्टो माइनिंग के लिए किया जाए, तो यह क्षेत्र न केवल भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था को मजबूत कर सकता है, बल्कि अतिरिक्त बिजली का भी सही उपयोग होगा।
कर्नाटक, तमिलनाडु और गुजरात जैसे राज्यों के पास सौर और पवन ऊर्जा की प्रचुरता है, जिसे क्रिप्टो माइनिंग के लिए प्रयोग किया जा सकता है। इससे न केवल अतिरिक्त राजस्व प्राप्त होगा, बल्कि ऊर्जा ग्रिड को भी स्थिर किया जा सकता है।
अन्य देशों से सीख: क्या भारत समय रहते कदम उठाएगा?
नॉर्वे ने जलविद्युत का उपयोग करके बिटकॉइन माइनिंग को पूरी तरह पर्यावरण के अनुकूल बना दिया है, जिससे कार्बन उत्सर्जन कम हुआ और राजस्व में वृद्धि हुई। भूटान ने 2019 से अब तक 12,000 बिटकॉइन माइन किए हैं और 2025 तक अपनी माइनिंग क्षमता को 600 मेगावाट तक बढ़ाने की योजना बनाई है। एल साल्वाडोर ने ज्वालामुखीय ऊर्जा का उपयोग करके एक “बिटकॉइन सिटी” बनाने का महत्वाकांक्षी कदम उठाया है।
इन सफलताओं को देखते हुए, भारत को भी इस उद्योग में कदम बढ़ाने की जरूरत है। देश के कुछ राज्य—बिना केंद्र सरकार की मंजूरी का इंतजार किए—स्वतंत्र रूप से क्रिप्टो माइनिंग को अपनाकर इसके आर्थिक और तकनीकी प्रभावों का आकलन कर सकते हैं।
निष्कर्ष: भारत के लिए समय आ गया है कदम उठाने का
क्रिप्टो माइनिंग केवल डिजिटल संपत्ति उत्पन्न करने का जरिया नहीं है, बल्कि यह ऊर्जा प्रबंधन, तकनीकी आत्मनिर्भरता और आर्थिक विकास का एक महत्वपूर्ण साधन बन सकता है। भारत में आवश्यक संसाधन और तकनीकी कौशल दोनों उपलब्ध हैं, लेकिन नीति-निर्माताओं को इस क्षेत्र को विकसित करने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है।
अब सवाल यह नहीं है कि भारत ने यह अवसर खो दिया है या नहीं, बल्कि यह है कि क्या भारत अभी भी इस क्षेत्र में अपनी जगह बना सकता है? सही रणनीति और अनुकूल नीतियों के साथ, भारत क्रिप्टो माइनिंग में वैश्विक स्तर पर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करा सकता है।
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