गैर-जीएम मक्का: भारत का वैश्विक व्यापारिक हथियार
सरकार के गन्ना-आधारित इथेनॉल फैसले से मक्का पर दबाव घटेगा, गैर-जीएम पहचान और वैश्विक व्यापारिक बढ़त को मिलेगी मजबूती

सरकार के गन्ना-आधारित इथेनॉल फैसले से मक्का पर दबाव घटेगा, गैर-जीएम पहचान और वैश्विक व्यापारिक बढ़त को मिलेगी मजबूती
नई दिल्ली: पिछले कुछ वर्षों से भारत में लागू इथेनॉल नीति ने मक्का किसानों और खाद्य बाजारों की दिशा बदल दी है। मक्का से इथेनॉल बनाने की बढ़ती मांग ने पोल्ट्री, स्टार्च और अन्य मक्का-आधारित उद्योगों के लिए गहरा संकट पैदा कर दिया। घरेलू बाजार में मक्के की कीमतें तेज़ी से बढ़ीं, निर्यात लगभग ठप हो गया और हालात ऐसे बने कि पिछले वर्ष भारत को मक्का आयात करना पड़ा। रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले वर्ष भारत ने तक़रीबन 10 लाख टन मक्का म्यांमार और यूक्रेन से खरीदा है। इन परिस्थितियों को देखते हुए, 1 सितंबर 2025 को भारत सरकार ने इथेनॉल सप्लाई ईयर 2025-26 के लिए गन्ने के रस, चीनी सिरप और सभी प्रकार के शीरे से इथेनॉल उत्पादन की सीमा हटा दी। पिछले वर्ष गन्ने की कमी के कारण यह सीमा लगाई गई थी। अब यह बदलाव चीनी मिलों को पुनः गन्ना-आधारित इथेनॉल उत्पादन के लिए प्रेरित करेगा और सरकार को 2025-26 तक E20 (20% मिश्रण) लक्ष्य को पूरा करने में मदद करेगा। इस फैसले का तुरंत सकारात्मक प्रभाव दिखा और उद्योग जगत ने इसे गन्ना किसानों के लिए सुनहरा अवसर बताया। साथ ही, यह कदम मक्का पर पड़ रहे दबाव को भी कम करेगा और भारत को अपने गैर-जीएम मक्का (Non-GM Maize) की पहचान बचाने का अवसर देगा। यह न केवल पोल्ट्री सेक्टर को मक्के की कमी से राहत दिलाएगा बल्कि खाद्य सुरक्षा और निर्यात प्रतिस्पर्धा की दिशा में भी सही कदम साबित होगा।

इस वर्ष की एक और बड़ी खबर रही कि GEAC ने ICAR और कुछ कृषि विश्वविद्यालयों में जीएम मक्का की सीमित फील्ड ट्रायल की अनुमति दी है। हालांकि अधिकारियों का कहना है कि ये केवल शोध-आधारित परीक्षण हैं और व्यावसायिक खेती की अनुमति नहीं दी गई है। इसके बावजूद पर्यावरणविदों ने चिंता जताई है कि यदि इन ट्रायल्स की कड़ी निगरानी नहीं की गई तो गैर-जीएम फसलें भी दूषित हो सकती हैं। गैर-जीएम समर्थक मांग कर रहे हैं कि सुरक्षा नियमों को और सख्त बनाया जाए, ट्रायल फसलों से दूरी रखी जाए और परीक्षण के बाद इन फसलों को पूरी तरह नष्ट किया जाए। भारत का गैर-जीएम प्रमाणन तंत्र पहले से ही मजबूत है। FSSAI ने कुछ फसलों के लिए गैर-जीएम प्रमाणन अनिवार्य कर रखा है। यही कारण है कि सरकार अब तक TRQ (Tariff Rate Quota) या समयबद्ध गैर-जीएम आयात को प्राथमिकता देती है। हमें यह समझने की ज़रूरत है कि गैर-जीएम मक्का भारत के लिए बोझ नहीं बल्कि व्यापारिक ताकत है। यूरोप और एशिया के कई देशों में इसकी भारी मांग है। अगर भारत अपनी गैर-जीएम मक्का उत्पादक पहचान बनाए रखता है, तो हमें वैश्विक स्तर पर बड़ी बढ़त मिल सकती है। गैर-जीएम व्यवस्था का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह विदेशों में भारत की कृषि व्यवस्था की पारदर्शिता, विश्वास और कानूनी सुरक्षा को रेखांकित करता है। जहाँ अन्य देशों में जीएम फसलों को लेकर मुकदमे और विवाद बढ़ रहे हैं, वहीं भारत इस विवाद से बचा हुआ है। भारत के E20 इथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम के विस्तार के साथ-साथ आयातक और निर्यातक देश, दोनों, हमारी गैर-जीएम नीति को बार-बार परखेंगे। इसलिए सरकार को गैर-जीएम प्रमाणन व्यवस्था को हर हाल में मजबूत बनाए रखना होगा।
इस मिशन को पूरा करने के लिए भारत सरकार को कुछ ठोस कदम उठाने होंगे जिससे हम आत्मनिर्भर भारत के अपने सपने को पूरा कर सकें। पहले तो सरकार को गन्ने पर आधारित इथेनॉल को प्राथमिकता देनी चाहिए, खासकर उन सालों में जब गन्ने की पैदावार अच्छी हो। दूसरा गैर-जीएम मक्का की नई हाईब्रिड किस्मों को तेजी से अपनाना होगा, जिससे मक्के की कमी के कारण इसके आयात की नौबत ना आये। सामुदायिक स्तर पर इसके फसल की निगरानी, कीट नियंत्रण और बीज उपचार को बढ़ावा होगा । अगर फिर भी भारी मांग के कारण अगर मक्के की कभी कमी हो भी जाती है तो केवल गैर-जीएम मक्का का सीमित आयात (TRQ के माध्यम से) होना चाहिए। पोल्ट्री और स्टार्च उद्योग की मदद के लिए सरकार को मक्का डाइवर्जन डैशबोर्ड बनाना चाहिए, ताकि ये इंडस्ट्री पहले से ही योजना बना सकें। जीएम ट्रायल को लेकर भी पारदर्शिता ज़रूरी है। सभी परीक्षण स्थलों की जानकारी सार्वजनिक हो, बफर ज़ोन बनाया जाए, ट्रायल फसलों को अंत में नष्ट किया जाए। ट्रायल के परिणाम चाहे अच्छे हों या बुरे, उन्हें प्रकाशित किया जाना चाहिए। जीएम समर्थकों का कहना है कि इससे पैदावार और कीटनाशक प्रबंधन में लाभ होगा। लेकिन असली समस्या बीज की गुणवत्ता, खेती के तरीके और भंडारण की है। गैर-जीएम हाईब्रिड किस्में ही पैदावार के इस अंतर को पाट सकती हैं।
निष्कर्ष यह है कि भारत को जलवायु लक्ष्यों और खाद्य सुरक्षा के बीच कोई कठिन समझौता करने की ज़रूरत नहीं है। सरकार का गन्ना-आधारित इथेनॉल की ओर लौटना सही दिशा में बड़ा कदम है। इससे मक्का पर दबाव कम होगा और भारत को गैर-जीएम मक्का की एक उत्पादक, लाभकारी और निर्यात-अनुकूल व्यवस्था बनाने का समय मिलेगा। यही भारत की रणनीतिक ताकत बन सकती है।
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