सिस्टर निवेदिता यूनिवर्सिटी में शुरू हुआ चौथा नेशनल मीडिया कॉन्क्लेव, तीन दिनों में 100 से अधिक शोध-पत्र होंगे प्रस्तुत
तीन दिवसीय कॉन्क्लेव में 100+ शोध-पत्र, वैश्विक साझेदार और प्रमुख मीडिया हस्तियाँ होंगे शामिल, संचार में हाशियाकरण और समावेशन पर रहेगा फोकस

तीन दिवसीय कॉन्क्लेव में 100+ शोध-पत्र, वैश्विक साझेदार और प्रमुख मीडिया हस्तियाँ होंगे शामिल, संचार में हाशियाकरण और समावेशन पर रहेगा फोकस
नई दिल्ली: सिस्टर निवेदिता यूनिवर्सिटी (SNU) में गुरुवार से चौथे राष्ट्रीय मीडिया कॉन्क्लेव की शुरुआत हुई। पत्रकारिता और जनसंचार विभाग द्वारा आयोजित यह तीन दिवसीय आयोजन शोध-पत्रों, प्लेनरी सत्रों और विशेष व्याख्यानों से सजा रहेगा। तीन दिनों में 100 से अधिक शोध पत्र प्रस्तुत किए जाएंगे। पूर्वी भारत में मीडिया अध्ययन को समर्पित इस तरह का यह अब तक का सबसे बड़ा अकादमिक मंच माना जा रहा है।
इस बार कॉन्क्लेव का विषय “रेप्रेज़ेन्टिंग द अनसीन: इंडिया ऐट द मार्जिन्स ऐन्ड मीडिया” रखा गया है, जिसका मकसद उन आवाज़ों और समुदायों को सामने लाना है जो अकसर मुख्यधारा की बहसों से गायब रहते हैं। चर्चा में हाशिए पर मौजूद जातियों-जनजातियों से लेकर लोककथाओं, कला-संस्कृति और सामाजिक मूल्यों में उपेक्षित आख्यानों को शामिल किया जाएगा।

इस साल आयोजन को अंतरराष्ट्रीय पहचान भी मिली है। इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर मीडिया एंड कम्युनिकेशन रिसर्च (IAMCR) और इंटरनेशनल कम्युनिकेशन एसोसिएशन (ICA) की भागीदारी ने इसे वैश्विक विमर्श का हिस्सा बना दिया है।
उद्घाटन सत्र में एसएनयू के कुलपति प्रो. (डॉ.) संकु बोस और प्रो-चांसलर प्रो. (डॉ.) ध्रुबज्योति चट्टोपाध्याय मौजूद रहे। इसके अलावा एआईयू की अतिरिक्त सचिव ममता रानी अग्रवाल, एनडीटीवी के कंसल्टिंग एडिटर जयंत घोषाल, इंडिया हैबिटेट सेंटर के निदेशक प्रो. के. जी. सुरेश, पूर्व आईपीएस अधिकारी ऋषिराज सिंह और प्रेस क्लब कोलकाता के अध्यक्ष डॉ. स्नेहाशीष सुर सहित अकादमिक और मीडिया जगत की कई प्रमुख हस्तियाँ भी शामिल हुईं।
कॉन्क्लेव की अध्यक्ष और एसएनयू के स्कूल ऑफ मीडिया कम्युनिकेशन, फाइन आर्ट्स, डिज़ाइन एंड ड्रामा की डीन डॉ. मीनल पारीक ने कहा—
“यह कॉन्क्लेव केवल शोध-पत्र प्रस्तुतियों का मंच नहीं है, बल्कि ऐसा स्थान है जहाँ छात्र विद्वानों और मीडिया विशेषज्ञों से सीधे जुड़ते हैं और गंभीर चिंतन को नज़दीक से समझते हैं। हमारे लिए यह आयोजन सामाजिक रूप से प्रासंगिक और बौद्धिक रूप से सशक्त संवाद को आगे बढ़ाने की हमारी प्रतिबद्धता का हिस्सा है।”
कॉन्क्लेव के संयोजक प्रो. अरिंदम बसु ने कहा—
“सिर्फ़ चार साल पहले 40 शोध-पत्रों से शुरू हुई यह यात्रा आज भारत के सबसे प्रतिष्ठित मीडिया अध्ययन मंचों में से एक बन गई है। यह कॉन्क्लेव शिक्षा और व्यवहारिकता के संगम पर खड़ा है—जहाँ अकादमिक शोध और समाज में मीडिया की भूमिका पर गहरी बहस एक साथ चलती है।”
तीन दिवसीय कार्यक्रम का क्रम:
- पहला दिन: “अनरिप्रेज़ेन्टेड इंडिया: लिव्स ऑन द मार्जिन्स थ्रू वेरीअस मास मीडिया” विषय पर आयोजित पूर्ण सत्र में स्टीरियोटाइपिंग, पोस्ट-प्रोडक्शन सौंदर्यशास्त्र, एआई युग में मीडिया साम्राज्यवाद और टीवी व विज्ञापन में जेंडर प्रतिनिधित्व पर चर्चा हुई।
- दूसरा दिन: “व्हाट कम्युनिकेशन ट्रूली इंक्लूड्स द मार्जिनलाइज्ड इन मेनस्ट्रीम डिस्कशन्स?” सत्र में डिजिटल असमानता, विकलांगता का प्रतिनिधित्व, मीडिया में दलित महिलाओं की छवि और सशक्तिकरण के रूप में स्टोरीटेलिंग पर बात होगी। वहीं, “पॉपुलर कल्चर’स स्ट्रेटजैकेटिंग ऑफ इंडिजिनस लाइफ़” विषय पर मुख्यधारा के सिनेमा, विज्ञापन और लोकमाध्यमों के असर की समीक्षा होगी।
- तीसरा दिन: “द रियलिटी ऑफ बीइंग मार्जिनलाइज्ड” पूर्ण सत्र में आदिवासी आवाज़ों की डिजिटल उपस्थिति, लोककथाओं का प्रतिरोध, सिनेमा में जेंडर स्टीरियोटाइपिंग और एल्गोरिदमिक साइलेंसिंग पर शोध-पत्र रखे जाएंगे। इसी दिन ICA और IAMCR वैश्विक स्तर पर हाशियाकरण, उदासीनता और जेंडर प्रतिनिधित्व पर सत्र आयोजित करेंगे।
कॉन्क्लेव का समापन 20 सितंबर को होगा। समापन सत्र में दूरदर्शन के संपादक और एंकर अशोक श्रीवास्तव और सुरेन्द्रनाथ कॉलेज के पत्रकारिता विभागाध्यक्ष डॉ. उमाशंकर पांडेय मुख्य वक्ता होंगे। साथ ही सचिन धीरज की डॉक्यूमेंट्री “टेस्टिमनी ऑफ आना” का प्रदर्शन और सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ भी होंगी।
अकादमिक विमर्श से आगे बढ़ते हुए कॉन्क्लेव में उद्योग और सांस्कृतिक साझेदारों की भी भागीदारी रही। साइबरपीस ने डिजिटल सुरक्षा और साइबर नैतिकता के महत्व को रेखांकित किया, ग्रूविंग कोलकाता ने खानपान और युवा रचनात्मकता से आयोजन में सांस्कृतिक रंग जोड़ा, जबकि शॉपर’स स्टॉप ने सेल्फी-बूथ पहल से छात्रों को एक नया और आकर्षक अनुभव दिया।
हाशियाकरण और समावेशन को चर्चा के केंद्र में रखते हुए और शिक्षा को वैश्विक विमर्श से जोड़ते हुए यह चौथा नेशनल मीडिया कॉन्क्लेव समावेशी, नैतिक और भविष्य-उन्मुख मीडिया प्रथाओं की दिशा तय करता है। गहन शोध, अंतरराष्ट्रीय सहयोग और सांस्कृतिक सहभागिता का यह संगम दिखाता है कि विश्वविद्यालय किस तरह गंभीर अकादमिक परंपरा को मज़बूत करते हुए नई पीढ़ी के मीडिया पेशेवरों को प्रेरित कर सकते हैं।
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