कारगिल विजय दिवस 2025: 26 वर्षों बाद भी गूंजता शौर्य और बलिदान का जयघोष
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने वीर जवानों को दी श्रद्धांजलि भारत ने 26 जुलाई को कारगिल विजय की 26वीं वर्षगांठ बड़े सम्मान और देशभक्ति के भाव...

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने वीर जवानों को दी श्रद्धांजलि
भारत ने 26 जुलाई को कारगिल विजय की 26वीं वर्षगांठ बड़े सम्मान और देशभक्ति के भाव के साथ मनाई। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इसे “असाधारण साहस का प्रतीक” बताया, जबकि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सैनिकों के बलिदान को “भारत के अटूट संकल्प का शाश्वत प्रतीक” कहा। इस अवसर पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे समेत विभिन्न दलों के नेताओं ने भी शहीदों को नमन किया
1999 का शौर्य गाथा: कारगिल युद्ध का इतिहास
कारगिल युद्ध 1999 में तब हुआ जब पाकिस्तान समर्थित घुसपैठियों और सैनिकों ने लद्दाख के ऊंचे इलाकों पर कब्जा करने की कोशिश की। कठिन भूभाग और भीषण परिस्थितियों में भारतीय सेना ने 60 दिनों तक चले ‘ऑपरेशन विजय’ के तहत दुश्मन को खदेड़ते हुए रणनीतिक चोटियों को वापस हासिल किया। इस संघर्ष में 500 से अधिक भारतीय जवानों ने सर्वोच्च बलिदान दिया, जिनकी वीरता आज भी राष्ट्रीय संप्रभुता और देशभक्ति के मूल्यों को मजबूत करती है।
देशभर में श्रद्धांजलि समारोह
दिल्ली स्थित राष्ट्रीय युद्ध स्मारक और लद्दाख के द्रास क्षेत्र—जहां सबसे भीषण लड़ाइयां लड़ी गई थीं—में मुख्य आयोजन हुए। इन समारोहों में न केवल शहीदों को याद किया गया, बल्कि कारगिल युद्ध के ऐतिहासिक तथ्यों और पाकिस्तान की भूमिका पर भी चर्चा हुई, जिसे उसने पहले नकारा था, लेकिन बाद में उसके ही नेताओं ने स्वीकार किया।
देश की सुरक्षा और एकजुटता का प्रतीक
कारगिल विजय दिवस सिर्फ शौर्यगाथा को याद करने का अवसर नहीं है, बल्कि यह भारत की सीमाओं की रक्षा के लिए आवश्यक साहस, समर्पण और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है। यह दिन हर नागरिक को यह संदेश देता है कि देश की संप्रभुता सर्वोपरि है और इसके लिए हर बलिदान पवित्र है।
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