साझा स्वामित्व से आत्मनिर्भरता तक: डीपिन मॉडल में भारत की बड़ी भूमिका

साझा स्वामित्व से आत्मनिर्भरता तक: डीपिन मॉडल में भारत की बड़ी भूमिका

ब्लॉकचेन आधारित डीपिन मॉडल भारत में डिजिटल और भौतिक बुनियादी ढांचे के विकास को नया आकार दे रहा है, जिससे आत्मनिर्भरता और सामुदायिक भागीदारी को गति मिल रही है।

नई दिल्ली: कल्पना कीजिए, अगर आपके मोहल्ले का ईवी चार्जिंग स्टेशन किसी बड़ी कंपनी का नहीं, बल्कि वहीं रहने वाले किसी व्यक्ति का हो — और ब्लॉकचेन से सीधे उसे भुगतान मिले। यही है डीपिन की असली ताकत।

डीचार्ज इसका बेहतरीन उदाहरण है — एक जमीनी स्तर का ईवी चार्जिंग मॉडल, जहां आम नागरिक और छोटे व्यवसाय खुद चार्जिंग स्टेशन लगाते हैं, ब्लॉकचेन की मदद से उनकी उपलब्धता और भुगतान का रिकॉर्ड रखते हैं और सेवा देने से सीधी कमाई करते हैं। यह मॉडल दिखाता है कि साझा स्वामित्व न केवल बुनियादी ढांचे की तैनाती को तेज़ करता है, बल्कि स्थानीय उद्यमिता को भी बढ़ावा देता है और पूंजी को समुदायों के भीतर बनाए रखता है।

मेसारी के आंकड़ों के अनुसार, 2023 के मध्य तक डीपिन नेटवर्क्स में 5 अरब डॉलर से अधिक मूल्य का निवेश लॉक था, और 2030 तक इसके 50 अरब डॉलर से पार पहुंचने का अनुमान है। वैश्विक स्तर पर, न्यूजचेन की रिपोर्ट बताती है कि 1,500 से अधिक सक्रिय प्रोजेक्ट्स इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं, जबकि विश्व आर्थिक मंच (WEF) का अनुमान है कि 2028 तक यह बाज़ार 3.5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है, जिसका प्रमुख चालक Decentralized Physical AI (DePAI) होगा।

भारत के संदर्भ में, यह विकास आत्मनिर्भर भारत की दृष्टि के अनुरूप है, जो डिजिटल समावेशन, स्थानीय नवाचार और समुदाय आधारित पूंजी निर्माण को प्रोत्साहित करता है।

मुख्य डीपिन उदाहरण:

1. डीचार्ज:


भारत की बढ़ती ईवी मांग को पूरा करते हुए, डीचार्ज व्यक्तियों और एमएसएमई को चार्जिंग स्टेशन लगाने के लिए सशक्त बनाता है। ब्लॉकचेन के ज़रिए पारदर्शी ट्रैकिंग से लेकर भुगतान तक की पूरी प्रक्रिया स्वतः संचालित होती है। 2024 के अंत तक इसने 10 लाख मिनट से अधिक चार्जिंग दर्ज की, इंडिया ब्लॉकचेन वीक में मान्यता प्राप्त की और लेम्निस्कैप सहित अन्य निवेशकों से 2.5 मिलियन डॉलर की सीड फंडिंग जुटाई।

2. एथिर:


2021 में डैनियल वांग और मार्क राइडन द्वारा स्थापित यह प्लेटफ़ॉर्म कंप्यूटिंग पावर की मांग वाली कंपनियों को उन व्यक्तियों से जोड़ता है जिनके पास अतिरिक्त GPU हैं। एनवीडिया और CARV जैसे साझेदारों के साथ, यह एआई ट्रेनिंग और गेमिंग को अधिक किफायती बनाता है, साथ ही हार्डवेयर मालिकों के लिए नियमित आय का स्रोत भी तैयार करता है।

3. डाबा नेटवर्क:


2017 में सोलाना ब्लॉकचेन पर निर्मित, यह नेटवर्क केंद्रीकृत टेलीकॉम मॉडल के बजाय स्थानीय स्तर पर प्रबंधित वाई-फाई हॉटस्पॉट्स पर आधारित है। कोई भी व्यक्ति डिवाइस खरीदकर इसमें शामिल हो सकता है, जबकि समुदायिक साझेदार नेटवर्क का संचालन संभालते हैं। यह मॉडल कम लागत, तेज़ लेनदेन और दूरदराज़ क्षेत्रों में कनेक्टिविटी लाने में मदद करता है।

भारत के लिए रणनीतिक अवसर

भारत में बुनियादी ढांचे और कनेक्टिविटी की असमानता अभी भी आर्थिक समावेशन की राह में बड़ी बाधा है। मोबाइल पहुंच तो व्यापक है, लेकिन विश्वसनीय ब्रॉडबैंड और ईवी चार्जिंग कवरेज विशेषकर ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में अब भी सीमित हैं।

डीपिन जैसे विकेंद्रीकृत मॉडल इस अंतर को पाटने का एक नया रास्ता दिखाते हैं। ऐसे सिस्टम जिनमें नागरिक खुद अपनी डिजिटल संपत्तियों का निर्माण, संचालन और लाभ उठा सकते हैं।

इन नेटवर्क्स से यह भी सुनिश्चित होता है कि आर्थिक मूल्य स्थानीय समुदायों के भीतर ही बना रहे, न कि केंद्रीकृत संस्थाओं तक सीमित हो। सरकारें नीतियां और मानक तय कर सकती हैं, जबकि समुदाय और निजी क्षेत्र तेज़ और अधिक समावेशी विस्तार सुनिश्चित कर सकते हैं। सोलाना डीपिन समिट और बेंगलुरु का उभरता वेब3 पारिस्थितिकी तंत्र इस दिशा में भारत की तैयारी का प्रमाण हैं।

डीपिन से मिलने वाले क्षेत्रीय लाभ

1. भौतिक संसाधनों का उपयोग: सेंसर, सोलर पैनल, GPU और चार्जर जैसी संपत्तियां ब्लॉकचेन आधारित प्रोत्साहनों से जुड़ी होती हैं, जिससे प्रतिभागियों को उनके योगदान के अनुसार उचित लाभ मिलता है।
2. ब्लॉकचेन का समन्वय: स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट्स के ज़रिए पारदर्शी, सुरक्षित और स्वचालित तरीके से योगदान और पुरस्कारों का प्रबंधन सुनिश्चित होता है।
3. वास्तविक उपयोग: हेलियम की वायरलेस कवरेज, फाइलकॉइन का ओपन स्टोरेज मॉडल और डीचार्ज का ईवी नेटवर्क — ये सभी उदाहरण दिखाते हैं कि डीपिन कैसे भौतिक प्रणालियों को नया आकार दे रहा है।

नीतिगत प्राथमिकताएं: कराधान, नियमन और सुरक्षा

1. कराधान: टोकन आधारित पुरस्कारों और पूंजी प्रवाह पर स्पष्ट कर नीतियां निवेशकों का भरोसा बढ़ा सकती हैं और अनुपालन को आसान बनाएंगी।
2. विनियमन: नियामक सैंडबॉक्स और सार्वजनिक-निजी साझेदारी के माध्यम से नवाचार को प्रोत्साहन मिल सकता है, जिससे सुरक्षित प्रयोग और उपभोक्ता संरक्षण सुनिश्चित होगा।
3. सुरक्षा: फर्मवेयर सुरक्षा, ऑन-चेन गवर्नेंस और एएमएल जांच जैसे मानक ब्लॉकचेन प्रणालियों में पारदर्शिता और जवाबदेही को सुदृढ़ करते हैं।

भारत के लिए आगे की दिशा

डीपिन का टोकन-आधारित मॉडल सूक्ष्म उद्यमिता, स्थानीय पूंजी निर्माण और समुदाय-आधारित विकास को नई गति दे सकता है। भारत को चाहिए कि वह:
• डीपिन पायलट के लिए नियामक सैंडबॉक्स लागू करे,
• कर नीतियों को स्पष्ट कर भागीदारी को बढ़ावा दे,
• वंचित इलाकों में सार्वजनिक-निजी पायलट प्रोजेक्ट शुरू करे,
• सुरक्षा और प्रमाणन मानकों को सुदृढ़ बनाए,
• और वेब3 अर्थव्यवस्था के अनुरूप क्रिप्टो-फ्रेंडली नीतियों को अपनाए।

निष्कर्ष

डीपिन न केवल तकनीकी नवाचार है, बल्कि यह सामुदायिक सशक्तिकरण और आत्मनिर्भरता का नया प्रतीक है। पारदर्शी शासन और समुदाय की सक्रिय भागीदारी से यह मॉडल उस भविष्य की नींव रखता है जहां बुनियादी ढांचा लोगों द्वारा और लोगों के लिए संचालित होगा। स्पष्ट नीतियों और सहयोगी ढांचे के साथ, भारत अपनी डिजिटल और भौतिक चुनौतियों को अवसरों में बदल सकता है — और आत्मनिर्भर भारत के विज़न को एक ठोस दिशा दे सकता है।

क्रिप्टो